Tuesday, September 20, 2011

कविता को पढने से पहले....
ये कविता हमारे भारत माता के शान मे लीखी गई है ईस मे बदलाव करने के लीये मै तहेदीलसे माफी चाहता हुं. मे ईसे मेरे दील पर पथ्थर रखकर ये कविता पोस्ट कराता हुं......

आओ बच्चों तुम्हें दिखाए झाकी घपलिस्तान की.
इस मिट्टी पे सर पटको ये धरती है बेईमान की.
बंदी में है हम, बंदी में है हम ....!!!

उत्तर में घोटाले करती मायावती महान है
दक्षिण में राजा-कनिमोझी करुणा की संतान है.
जमुना जी के तट को देखो कलमाडी की शान है
घाट-घाट का पानी पीते चावला की मुस्कान है.
देखो ये जागीर बनी है बरखा-वीर महान की
इस मिट्टी पे सर पटको ये धरती है बेईमान की.
बंदी में है हम, ...बंदी में है हम...!!

ये है अपना जयचंदाना, नाज़ इसे गद्दारी पे.
इसने केवल मूंग दला है मजलूमों की छाती पे.
ये समाज का कोढ़ पल रहा, साम्यवाद के नारों पे
बदल गए हैं सभी अधर्मी भाडे के हत्यारे में .
हिंसा-मक्कारी ही अब,पहचान है हिन्दुस्तान की.

इस मिट्टी पे सर पटको ये धरती है हैवान की.
बंदी में है हम...बंदी में है हम....!!

देखो मुल्क दलालों का, ईमान जहां पे डोला था.
सत्ता की ताकत को चांदी के जूतों से तोला था.
हर विभाग बाज़ार बना था, हर वजीर इक प्यादा था.
बोली लगी यहाँ सारे मंत्री और अफसरान की.

इस मिट्टी पे सर पटको ये धरती है शैतान की.
बंदी में है हम , बंदी में है____!!!

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